"गर वैसा होता और ऐसी बात न होती" कैसे बरसती चांदनी ,अगर रात न होती न चांद आता आसमां में ,न होती तब चांदनी बस होता दिन, हर तरफ बस रोशनी न चांद होता ना चांदनी की बात होती होती तपिश उमस आग बस चांदनी की ठंडक की तब क्या बिसात होती । गर वैसा होता --------- न घूमती जो धरा अपनी धुरी पर, यूहीं ठहर सा जाता सब कैसे खुशनुमा दिन और हसीं रात होती जरूरी है ज़िन्दगी में थोड़ा झुकाव भी प्रथ्वी ना झुकी होती गर अक्ष पर कैसे बदलते मौसम न सर्दी , गरमी,बसंत और न बरसात होती गर वैसा होता ------ किस काम का अथाह जल समुद्र का क्या होती हैसियत समुद्र की जो नदियां उसके साथ ना होती कौन पूछता बादलों को गर वो, उमड़ते उम्हलते और गरजते मगर उनसे बरसात ना होती क्या जरूरत थी पेड़ पौधों की , गर उनसे फूल फल और छांव की सौगात ना होती गर वैसा होता ------ खुशियों की भी क्या कोई कीमत होती जो केवल खुशियां होती गर दरवाजे पर गम की आवाज ना होती क्या बन पाते राम कभी मर्यादा पुरुषो्तम, जो सुख ही होते दुख ना होते, कौन बनाता महान राम को ,सीता हरण की रावण की जो औकात ना होती । गर वैसा होता -------- "गर वैसा होता ऐसी कोई बात ना होती"