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आप्रवासी ये जो परिंदे हैं आसमान में कल ठहरे थे मे

आप्रवासी

ये जो परिंदे हैं आसमान में कल ठहरे थे मेरे प्रांगण में। 
मकान के पिछले जंगल से कुछ तिनके, 
पगडंडियाँ लाकर बरामदे में बिखेर दी थी इस अभिलाषा में कि
ये प्रवासी मेरे घर मे अपना घोंसला बसाएंगे। 
उनकी इस श्रम प्रक्रिया से प्रस्फुटित होने वाली प्रेमाभा में 
आर्द होने की आकांक्षा चक्षुओं में समेटे मै सो गया। 
भोर फूटी तो निंद्रा टूटी, सूर्य की प्रभा में 
बड़ी आशा के साथ मैंने आंगन की और देखा । 
कल रात के बिखराए हुए तिनके लगभग उसी समानता के
साथ गृहमूल पर छितरे हुए थे। 
पेड़ो पर कोई चहचहाहट नहीं थी, 
घर के चौक में चहल पहल भी कम थी, 
केवल एक कुत्ता था जो धूप के निर्झर में, 
नींद की मादकता में चित्त पढ़ा था।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola
  #lovebirds 

आप्रवासी

ये जो परिंदे हैं आसमान में कल ठहरे थे मेरे प्रांगण में। 
मकान के पिछले जंगल से कुछ तिनके, 
पगडंडियाँ लाकर बरामदे में बिखेर दी थी इस अभिलाषा में कि
ये प्रवासी मेरे घर मे अपना घोंसला बसाएंगे।

lovebirds आप्रवासी ये जो परिंदे हैं आसमान में कल ठहरे थे मेरे प्रांगण में। मकान के पिछले जंगल से कुछ तिनके, पगडंडियाँ लाकर बरामदे में बिखेर दी थी इस अभिलाषा में कि ये प्रवासी मेरे घर मे अपना घोंसला बसाएंगे।

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