'उभय-निष्ठ' अभी दुरी है जो स्वभाविक है मौज है ऊकसाती है लजाती है बढते जा रही है अलग-अलग परंतु,दिशा एक है शारीरिक गुण उत्साह पूर्ण निर्माण तरूण || अभी चोरी है जो अभाष है बहुत खास है पिछला फाटक है विश्वास नाटक है हलका है चलता है परंतु,खलता है आपरिपक्व संदेश अचेत परिवेश अतरिक्त उद्देश्य || अभी मेरी है जो लहकी है चहकी है महकी है साथ देने को बहकी है तेज है लवरेज है परंतु,अर्ध है सौजन्य कर्ज संबंध सर्द समाजिक तर्ज || Dedicating a #testimonial to Yogesh Sharma (Yk)प्रिय योगेश जी,आप के लिए यह प्रेम कथा।आप प्रायः सबको प्रोत्साहित किया करते हैं।इस विशेषता को नमन🙏 'उभय-निष्ठ' अभी दुरी है जो स्वभाविक है मौज है ऊकसाती है