साड़ी की प्लीट्स तहाकर हाथों से क्रीज़ बनाते हैं बेटे भी बेटी जैसे माँ के कंधे पर पल्लू सेट करवाते हैं . हारी-बीमारी में माँ की कच्ची-पक्की आढ़ी-तिरछी बड़े ही चाव से रोटियां सिंकवाते हैं, बेटे भी बेटी जैसे दाल में छौंका लगाते हैं. दुनिया जहान की भीड़-भाड़ में माँ का हाथ पकड़ सड़क पार करवाते हैं बेटे भी बेटी जैसे माँ की चूड़ियों संग बिंदी का मैच मिलवाते हैं. आधी-अधूरी साईकिल सीख कैंची-पैदल चलते चलाते मां को पीछे बिठा सैर करवाते हैं बेटे भी बेटी जैसे मां का हमसाया बन जाते हैं. कभी पढ़ाई तो कभी रोजगार की खातिर प्यारी मां से दूर हो जाते हैं बेटे भी बेटी जैसे फिर याद आ खूब सताते हैं . गलबहियां कर रूठी मां से मान-मनौव्वल को आँख में आँसू भर लाते हैं बेटे भी बेटी जैसे माँ की प्यारी 'गुड़िया' कहलाते हैं. मां के ही जैसे नाक-नक्श लिए उन सी ही सब पर ममता लुटाते हैं मां के बाद उनकी जगह ले बेटे भी बहनों पर प्यार बरसाते हैं. ❤️❤️❤️ ©Shivangi Priyaraj #waiting