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किसी का यूं ही अनायास मुस्कुराना हो सकता है हुनर

 किसी का यूं ही अनायास मुस्कुराना
हो सकता है हुनर दर्द -ए-जख्म छिपाना,
अब हर कोई हमदर्द कहां बन पाता है
मुनासिफ नहीं तमाशबीनो को हर राज़ बताना!

और वो जो महफ़िल में
दलीलें देते हैं अपनी बेगुनाही की,
किरदार उनसे सीखें कोई
खुद कत्ल करके आंशू बहाना,

समंदर कहां प्रपंच करता है
खुद की गहराई का
तूफानों से सीखा है मैंने
हद से पहले खामोश रह जाना।

©Yogesh sood humrahi 
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