उम्र की वसीयत पर साँसों का दस्तख़त है या ख़ुदा उतनी ही मिले जितनी ज़रूरत है ! अब गुल मिले या ख़ार उसकी फ़िकर क्या ज़िन्दगी तुझसे कोई शिकवा न शिक़ायत है ! कोई जीते कोई हारे क्या ही बदल जायेगा कुर्सी पर जो भी आता है वो ही मुसीबत है ! जो दिखाता है जो बोलता है वो सच कहाँ सच इतना कि जान बची है ये ग़नीमत है ! धुन्ध में ढँकी दुनियाँ कितनी रूमानी मलय नज़र आती सबकी बदली हुई शख्सियत है ! ©malay_28 #धुन्ध से ढँकी दुनियाँ #Childhood