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देर हो गई बहुत खुद को समझदार बनाने मे हम नासमझ ही

देर हो गई बहुत खुद को समझदार बनाने मे
हम नासमझ ही अच्छे थे होशियारो की बस्ती मे

खेलना नही सिख पाये किसी के जज्बातो से
हम रेत ही अच्छे फिसल गये मतलबी हाथो से

खमोशी ही अच्छी हे शोर के बाजार मे
 भाने लगी अब गमे बहार फरेबियो के ससांर मे

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