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हम घूम रहे थे कुछ इस कदर, कभी रुक रहे थे इधर तो क

हम घूम रहे थे कुछ इस कदर, 
कभी रुक रहे थे इधर तो कभी उधर, 
पता नहीं चला कहाँ जाकर थम जाएँ, 
इतनी हसीन थीं वो दुनिया कि
वहाँ से लौटने का मन ही ना करे।  OPEN FOR COLLAB✨#ATख्वाबोंकीनगरी • A Challenge by Aesthetic Thoughts! ♥️

इस खूबसूरत चित्र को अपने प्यारे शब्दों से सजाएं|✨ 

Transliteration: 
Khwaabon ki nagri mei
(In the city of dreams)
हम घूम रहे थे कुछ इस कदर, 
कभी रुक रहे थे इधर तो कभी उधर, 
पता नहीं चला कहाँ जाकर थम जाएँ, 
इतनी हसीन थीं वो दुनिया कि
वहाँ से लौटने का मन ही ना करे।  OPEN FOR COLLAB✨#ATख्वाबोंकीनगरी • A Challenge by Aesthetic Thoughts! ♥️

इस खूबसूरत चित्र को अपने प्यारे शब्दों से सजाएं|✨ 

Transliteration: 
Khwaabon ki nagri mei
(In the city of dreams)