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मैं रोज़ टूटती हूँ, मैं रोज़ बिखरती हूँ सहेज कर ज़र

मैं रोज़ टूटती  हूँ, मैं रोज़ बिखरती हूँ 
सहेज कर ज़र्रा ज़र्रा फिर ख़ुद ही संभलती हूँ!

मुझे शौक नहीं किसी और की बैसाखियों का
टूटे आस मगर हौंसलों के अपने पर रखती हूँ!

 ज़िंदगी की हर दिन नई आज़माईश से
 कभी थकती नहीं मैं और अधिक निखरती हूँ!

लोगों की तरह रंग  बदलना फ़ितरत नहीं
समझते पत्थर, मगर सोने सा दिल रखती हूँ।

लड़की हूँ  तो क्या, मैं आबरू नहीं रखती,
मैं भी इंसान हूँ, इज़्ज़त से जीने का हक़ रखती हूँ! आप सभी को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। 
लड़कियाँ जो ख़ुद में किसी कविता से कम नहीं। उनके लिए एक कविता अपने शब्दों में लिखें।
#बालिकादिवस #लड़कियाँ #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
मैं रोज़ टूटती  हूँ, मैं रोज़ बिखरती हूँ 
सहेज कर ज़र्रा ज़र्रा फिर ख़ुद ही संभलती हूँ!

मुझे शौक नहीं किसी और की बैसाखियों का
टूटे आस मगर हौंसलों के अपने पर रखती हूँ!

 ज़िंदगी की हर दिन नई आज़माईश से
 कभी थकती नहीं मैं और अधिक निखरती हूँ!

लोगों की तरह रंग  बदलना फ़ितरत नहीं
समझते पत्थर, मगर सोने सा दिल रखती हूँ।

लड़की हूँ  तो क्या, मैं आबरू नहीं रखती,
मैं भी इंसान हूँ, इज़्ज़त से जीने का हक़ रखती हूँ! आप सभी को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। 
लड़कियाँ जो ख़ुद में किसी कविता से कम नहीं। उनके लिए एक कविता अपने शब्दों में लिखें।
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anitasaini9794

Anita Saini

Bronze Star
New Creator