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न जाने कब मैं बूढ़ा हो गया, दुनिया के नजरों में ; अ

न जाने कब मैं बूढ़ा हो गया,
दुनिया के नजरों में ;
अभी तो सोच ही रहा था ,
उस अधूरे काम के बारे में ;
मन का तन का तस्वीर,
वैसा का वैसा ही था ,
पर मैं गलत था उस परिवेश में ;
मन का विचार जवान था ,
पर तन तो उम्र की नजाकत,
के साथ रूप परिवर्तन कर ली थी।
हमसे घृणा करने वाले ,
अपशब्द कहकर मजा लेते हैं।
सघर्ष करते मूर्ख आशावान है,
बुढाढ़ी के तन के लेकर ,
नवजवान के बीच घुसा चला है।
मेरी अवस्था का मजाक उड़ाने वालों,
दुवा है मेरी उम्र भी तुझे लग जाएं,
उम्र के इस पायदान में घृणा करनेवालो,
 तू भी जल्दी आ जाओ।

©THE EVENT IN EVERY STREET (R K C)
  #मेरी_विचार_अभी_नही_बदली