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दिवास्वप्न से दिखते हो तुम, नयन निहारे अवचेतन में।

दिवास्वप्न से दिखते हो तुम,
नयन निहारे अवचेतन में।
सदा समाये उर अंतर में,
अतृप्त चाहना पर मन में।

स्मृतियों में आन बसे हो,
ज्यूँ राधा के कान्ह सरीखे।
विरह वेदना दीप शिखा सम
हृदय जले पर घाव न दीखे।


गहन निशा इस जीवन की,
पग पग पर छलती रहती है,
मरुस्थल के एकाकी पन में
विरहन को ठगती रहती है।

©Sneh Lata Pandey 'sneh'
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