उसने दिल के पिंजरे में छुपा लिया सोने के महल में भला कब मैं रहता इससे आलिशान मकां नहीं था कोई उसके हुजरे में तो मैं हर ग़म सहता उसने हाथ चूमकर ज़ंजीरें थमा दीं मैं बंधता नहीं तो और क्या करता आसमां खुला था पंख भी सलामत क्यों उड़ जाने का मन नहीं करता गला भर आया आंसू थे आंखों में इससे ज़्यादा वो और क्या करता #मोहब्बत_की_ज़ंजीर