अपने जीवन में जितना भी मैंने अनुभव किया है, अक्सर यही देखा है कि बड़ा मुश्किल है , लोगो को पहचानना, ये जानना कि कौन शत्रु है, और कौन मित्र??????? पर ये भी जरूरी नहीं है कि जो मीठा मीठा बोल, रहा है वो अंदर से कड़वा ना हो, सत्य तो ये है कि जिनकी जुबान मीठी है , वो अंदर से उतना ही विषैला होता है.... ठीक से जांच पड़ताल ना कर लो , तब तक दोस्त मत बनाओ, अत्यंत दुःख का कारण वही लोग बनते है, जिनके व्याहर की पुष्टि हम ठीक से नहीं कर पाते, और अनजाने में दोस्त बना बैठते है , और धोखे के बाद पछतावे के सिवाय , कोई विकल्प नहीं बचता.... लोगो से विश्वाश टूटता है वो अलग...... गलती हमारी होती है, बिना गुणों को जाने परखे मित्र बना लेना... जिंदगी भर एक कभी न भरने वाला घाव लेके जीना, उचित तो यही है कि ऐसे लोगों को दोस्त ना बनाए, जिन्हें हम भली भांति जानते न हों... और जानने के बाद भी अगर गलती से , उसके विषय में पता चल जाए तो , सही यही होगा कि वो लाभ ना उठा पाए , जिस वजह से उसने दोस्ती जैसे अच्छे रिश्ते का , सहारा लिया है...वो भी अपने फायदे के लिए... ये पैरा यू ही नहीं लिखा मैंने, कई मामले है जो, इसके उदाहरण है....हर युग में.....(सरस.k) (Saraswati gyaansagar) #jhuthedost