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कुण्डलिनी छंद: ग्यारह ग्यारह  बनने  के  लिए,  मिल

कुण्डलिनी छंद: ग्यारह

ग्यारह  बनने  के  लिए,  मिले   एक  से  एक।
फिर भी मिलकर वे सभी, करते काम न नेक॥
करते  काम  न  नेक,  मगर   होते  पौ  बारह।
बढ़ता   भ्रष्टाचार,    बने जब  एकम   ग्यारह॥

©दिनेश कुशभुवनपुरी
  #कुण्डलिनी_छंद #एकम_ग्यारह RD bishnoi Ritu Tyagi मनोज मानव RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र)