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आंखें गीली है क्यों मुस्कुरा रही हैं भड़ास निकालि

आंखें गीली है क्यों मुस्कुरा रही हैं 
भड़ास निकालिए क्यों छुपा रही हैं
आईना कभी झूठ नहीं बोलता है
चेहरे के भावों को क्यों डरा रही हैं
आखें गीली है.....
सलवटें तो हर हाल बता ही देती हैं
अश्क धारियों को क्यों मिटा रही हैं
सुर्ख होठों की रंगत स्याह पड़ गई
अपने मन को क्यों बहला रही हैं 
आखें गीली है…...
दिल के भावों को भी पढ़ लेते हैं  लोग
गज़ल के राग में ठुमरी क्यों गा रही हैं 
पीतल सोना नहीं हो सकता है कभी
"सूर्य " सोने का पानी क्यों चढ़ा रही हैं
आखें गीली है......

©R K Mishra " सूर्य "
  #आखें  Rama Goswami Sethi Ji Chetna Dubey J. Chandravanshi Ashutosh Mishra