मोहब्बत ए किताब के कुछ पन्ने में अधूरे राज़ दफ़न हैं, कुछ यूं बिखरी हमारी मोहब्बत दिल्लगी ओढ़े कफ़न हैं। यूं आजमाकर ना देख हमें, हम नाजुक सा दिल रखते हैं, ना खेल दिल से हम-नफ़स तुम्हें आंखों में बसा कर रखते हैं। अतीत के पन्नों से हुआ हूँ रूबरू आज, मेरी इश्क की किताब कि तुम हो गहरा राज़। मेरी मोहब्बत का पहला अक्षर भी तुम हो, मेरी असीर -ए - अंदाज़ भी तुम हो, सताइश सुन अपनी हवा में ना आया कीजिए, मौसम के बदले मिज़ाज पर ज़रा गौर कीजिए, दिलबरा चाहतों को मेरी, आजमाना छोड़ दें, विश्वास कर, या आंखों से जाम पिलाना छोड़ दें, दिल के दरीचें में इज़ाजत है "रोज़ी" को हर सू, आजमाना भूल कर कभी नज़र मिलाना रूबरू। ♥️ Challenge-529 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।