हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और हमारे कोई भी बाकी न रहे क्योंकि खाने और दिखाने के एक थे। बेगैरत दुनिया में गैरतमंद की गैरत का क्या मोल। मुँह की खाते हैं इरादे जिनके नेक थे। नंगों की भीड़ में कपड़े पहन के आने वाले को बेशर्म यहाँ कहते हैं। सत्य की राह पर चलने वाले यहाँ बहुत कुछ सहते हैं। चलता कोई ही है असूलों पर बात करने वाले तो अनेक थे। हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और हमारे कोई भी बाकी न रहे क्योंकि खाने और दिखाने के एक थे। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ हाथी के दाँत