#FourLinePoetry समझाने वाले बहुत मिले, समझने वाला कोई नहीं, यहां दिखते सब अपने है, पर अपना कोई नहीं l रास्ते बहुत है लेकिन, मंजिले मिलती नहीं, चाह कर भी देखा मैंने, पर मेरी अपनी ज़मीन नहीं l कोसने जाऊँ किसे मैं आखिर, शायद मैं उस काबिल नहीं, मैं हूँ, जो भी, जैसी भी हूँ, सच्चाई की मुरत हूं, तुम करते रहो छलावा, पर मैं डिगने वाली नहीं l अब रहा न शेष कुछ भी बाकि तुमको समझाने को, मैं थी, मैं रहूंगी सदा, मुझ जैसा शायद कोई नहीं l ©Dr SONI #fourlinepoetry