इक पिंजरा अब सुना सा हो गया है , कोई रहता था वहाँ....कभी हवाओं में झूमते हुए , तो कभी तारों में जुगनू ढूंढ़ते हुए । यादें थोड़ी धुंधली सी हो गई हैं , पर कुछ-कुछ याद हैं मुझे की हर सुबह में उसी पिंजरे के पास जाकर खुद को आज़ाद महसूस करती थीं , बहुत खूबसूरती से बनाया गया होगा उसे । शायद किसी ने बहुत प्यार से सजाया होगा उसे..... जिसमें बहुत सारे ख़्वाब हर रोज जगते थे और मेहनत थकान का तकिया लगाकर , उम्मीदों के बिस्तर पर सोती थी । हर नई सुबह इक नया वजूद देती...कुछ ऐसा था मेरा वो पिंजरा.... खैर , अब मुझे ज्यादा महसूस नही होता । पर वो पिंजरा आज भी जैसे मेरे लिये मेरी पहली ज़रूरत हो । वो पिंजरा नही , घर हो जैसे...जिसने मुझे अपनी खुशियों से बांध रखा हो...ना किसी के होने का डर , ना किसी को खोने का डर । बस इक सुकून था , इक सुकून अकेलेपन का...जिसमे दर्द तो था पर ये दर्द ही मेरी आदत थी । पर अब किसी दूर सितारें के साथ वोपिंजरा भी कहीं खो गया हैं । जो बाकी हैं कुछ , तो वो कुछ निशान हैं...वक़्त के साथ ये भी मिट जाएँगे , बिल्कुल वैसे ही , जैसे ये पिंजरा और पिंजरे वाली । ( हकीकत की ये दुनिया बहुत झूठी हैं कनक , सितारों के इस आसमाँ को ही अपना घर बना लो ) -knk . ©Kanak Guri .... #sagarkinare #kanaklakhesar #thought