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क्या बताऊ ए ज़िंदगी तुझसे गिला कल भी था आज भी है 

क्या बताऊ ए ज़िंदगी 
तुझसे गिला कल भी था आज भी है 
मैं अकेला कल भी था आज भी हूं 
कल डरता था अकेला पन मुझे खा न जाये 
आज सुकून है अकेले पन में अब न कोई दर्द देने आये
कभी-कभी सोचता हूं जिंदगी मैं तेरी रज़ा क्या है
तू वफा भी करती है तो सज़ा बन जाती है
पल में ज़िंदगी नए मोड़ पर आ जाती है
बदलाव की बात ही क्या करु मैं ज़िंदगी
देख कितना बदल गया हूं मैं खुद को न जानता हूं
तेरे दिये ज़ख्मो पर अब न रो पाता हूं न हँस पाता हूं।

©Poonam Nishad
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