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मेरे दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं शायद, वक़्त-बेवक्त म

मेरे दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं शायद,
वक़्त-बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं,
मेरी गली से गुजरते हैं छुपा के खंजर,
रुबरू होने पर सलाम किया करते हैं।

©Khushbu Singh
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