ए दोस्त,........... मेरे हमदम ..... ए अहसास-ए-अज़ीज .... जाने कौनसी जद्दोजहद में जाने अनजाने तेरे बेतरतीव चलते वार ............... तीर ..... तलवार........ सब झेल कर आज तुझे सम्बोधन करने को बचा कुचा मैं.. फिर से तत्पर ,तैयार .... इससे पहले तुम फिर से भर लो दोनो मुट्ठी तूफानों से,. बस एक बार जुबां से,..... आंखो से..........., या ओर किसी इशारे से पूछो .......... "कैसे हो" बेहतर है....... सब कुछ बेहतर सा है ....….............. लेकिन जाने कैसे बस कुछ ज़ख्म ऐसी नरम जगह पर लगे हैं ............. कि न रिसना बन्द होता है, न खुल के बहते हैं...................., न आराम आता है न ही बहुत दर्द रहता है ...…..................... उन जख्मों को न ही हरा छोडा जाता न ही वो भरेंगे ..........., जब तुम सिर्फ मेरे होकर दिन दो दिन बैठोगे मेरे पास........ तो पट्टी हटाऊंगा ओर दिखाउंगा......... की ये देखो मैं कैसे रिस रहा हूँ देखो कैसे रिस रिस कर रीत रहा हूँ ........... तब तुम खोलना..…….....…............ तुम्हारे पास रखी ..... मलहम की उस डिब्बी का ढक्कन..... जो तुम्हारे पास है …........ ओर सिर्फ मेरे लिए है ......... निकालना अपनी अंगुली से, डिब्बी के उस कोने से मलहम जहां से पहले कभी नही निकाला ................ लगा देना मुझसे रिसते हुए मुझ मे.......... उस मलहम को ओर रोक लेना मेरा रिसना... रिस रिस कर रीत जाना ... इससे पहले की मैं रीत जाऊ रीत कर बीत जाऊ तुम आ ही जाना............. आओगे न Writen by me For some body ©VHP Jaipur Prant मुझसे रिसता हुआ सा मैं #Anhoni