एक आदमी जो मर रहा, एक आदमी वो हँस रहा, फिर कौन सच्चा आदमी, ये पूछता शहर रहा| भरम की स्याही से जो तू धर्म अपना लिख रहा, वो तेरे धर्म के करम का हैवान आज दिख रहा| ये ख़ाक में मिलाकर जो राख तुम समेटते, ये हस्तियाँ जलाकर जो तुम अस्थियाँ सहेजते| वो मौत के बाज़ार में इंसानियत को बेचते, वो मौत वापस आएगी तेरे निशानों को खोजते| क्या सोचता है कभी जो कर रहा, क्या कर रहा? कैसै घना अंधेरा इतना कि कुछ भी न दिख रहा| चिकनी मिट्टी का घड़ा है वो जो पाप से तू भर रहा, चल लिखता हूँ मैं आज ही, तू कल में शायद मर रहा| तू कल में शायद मर रहा| #yqbaba #yqdidi #srilankaattack #yqhindi #yqquotes #rakshism #attack #terrorism