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एक आदमी जो मर रहा, एक आदमी वो हँस रहा, फिर कौन सच्

एक आदमी जो मर रहा, एक आदमी वो हँस रहा,
फिर कौन सच्चा आदमी, ये पूछता शहर रहा|
भरम की स्याही से जो तू धर्म अपना लिख रहा,
वो तेरे धर्म के करम का हैवान आज दिख रहा|

ये ख़ाक में मिलाकर जो राख तुम समेटते,
ये हस्तियाँ जलाकर जो तुम अस्थियाँ सहेजते|
वो मौत के बाज़ार में इंसानियत को बेचते,
वो मौत वापस आएगी तेरे निशानों को खोजते|

क्या सोचता है कभी जो कर रहा, क्या कर रहा?
कैसै घना अंधेरा इतना कि कुछ भी न दिख रहा|
चिकनी मिट्टी का घड़ा है वो जो पाप से तू भर रहा,
चल लिखता हूँ मैं आज ही, तू कल में शायद मर रहा| तू कल में शायद मर रहा|
#yqbaba #yqdidi #srilankaattack #yqhindi #yqquotes #rakshism #attack #terrorism
एक आदमी जो मर रहा, एक आदमी वो हँस रहा,
फिर कौन सच्चा आदमी, ये पूछता शहर रहा|
भरम की स्याही से जो तू धर्म अपना लिख रहा,
वो तेरे धर्म के करम का हैवान आज दिख रहा|

ये ख़ाक में मिलाकर जो राख तुम समेटते,
ये हस्तियाँ जलाकर जो तुम अस्थियाँ सहेजते|
वो मौत के बाज़ार में इंसानियत को बेचते,
वो मौत वापस आएगी तेरे निशानों को खोजते|

क्या सोचता है कभी जो कर रहा, क्या कर रहा?
कैसै घना अंधेरा इतना कि कुछ भी न दिख रहा|
चिकनी मिट्टी का घड़ा है वो जो पाप से तू भर रहा,
चल लिखता हूँ मैं आज ही, तू कल में शायद मर रहा| तू कल में शायद मर रहा|
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rakshitraj4393

Rakshit Raj

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