तकलीफ तो दी है मैंने बहुत लोगो को.. कभी परायो को तो कभी किसी अपने को.. लाख कोशिशों बाद भी ये दिल कम्बक्त संभल नहीं पता लाख सवालों बाद भी ये दिल सवाल भूल नहीं पता.. वो जो शायद हमसे जुड़ बैठे थे ये दिल उसे भूला नहीं पाता.. गलतिया न उसकी थी न हमारी शायद वक्त की थी जो महरम बनते बनते कम्बक्त फिर एक झटके में झक्म बन बैठा.. मैं हजार कोशिशे करु उस मंजर को भुलाने की मगर फिर किसी घड़ी की टिक टिक से वो घडी याद आजाती थी.. सोचरही हूं, कि ये सवाल ही क्यों है? कि किसी के ना होने से तकलीफ नहीं होती.. क्यूकी इस सवाल में कोई जज्बात नहीं है... किसी को खुद से दूर करना जो इतना करीब भी नहीं था फिर भी तकलीफ देता है... 'जनाब' सावल तो यही है कि रब ने लोगो को मिला ही क्यों है? शायद शोंंक है रब के.. लोगो की तरह उसे भी तो ज़ज़बातों के खेल खेलने है। //ये अजनभी सी तकलीफ//❤️ तकलीफ तो दी है मैंने बहुत लोगो को.. कभी परायो को तो कभी किसी अपने को.. लाख कोशिशों बाद भी ये दिल कम्बक्त संभल नहीं पता लाख सवालों बाद भी ये दिल सवाल भूल नहीं पता..