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ख़्वाबों की बस्ती में तो, रोज आना जाना होता है। रोज

ख़्वाबों की बस्ती में तो, रोज आना जाना होता है।
रोज उन्हीं पुरानी यादों का, सपना सजाना होता है।

रोज एक नए ख़्वाब में, एक नया तराना रहता है।
ख़्वाबों की दर-ओ-दीवार में, गुजरा ज़माना होता है।

मिलती नहीं फुरसत, कि हक़ीक़त में उनसे रूबरू हों।
ख़्वाबों की दहलीज में ही, उनका ठिकाना होता है।

कैसे बनेगी मुक़म्मल दास्ताँ, कैसे ये कहानी बढ़ेगी।
लोगों की ज़ुबान पे तो, बस एक ही तराना होता है।

कि हक़ीक़त में शायद, हम मिल ना पाएंगे कभी।
और सिर्फ कहने के लिए ही, ये अफ़साना होता है।

मजबूर है दोनों की मोहब्बत और चाहत है अधूरी।
क्या इसी तरह हक़ीक़त में, साथ निभाना होता है। ♥️ Challenge-571 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। 

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ख़्वाबों की बस्ती में तो, रोज आना जाना होता है।
रोज उन्हीं पुरानी यादों का, सपना सजाना होता है।

रोज एक नए ख़्वाब में, एक नया तराना रहता है।
ख़्वाबों की दर-ओ-दीवार में, गुजरा ज़माना होता है।

मिलती नहीं फुरसत, कि हक़ीक़त में उनसे रूबरू हों।
ख़्वाबों की दहलीज में ही, उनका ठिकाना होता है।

कैसे बनेगी मुक़म्मल दास्ताँ, कैसे ये कहानी बढ़ेगी।
लोगों की ज़ुबान पे तो, बस एक ही तराना होता है।

कि हक़ीक़त में शायद, हम मिल ना पाएंगे कभी।
और सिर्फ कहने के लिए ही, ये अफ़साना होता है।

मजबूर है दोनों की मोहब्बत और चाहत है अधूरी।
क्या इसी तरह हक़ीक़त में, साथ निभाना होता है। ♥️ Challenge-571 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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