यहाँ कोई बाढ़ ना कोई अकाल पडा है फिर भी दिल रो पडा है बाहर 4G 5G का अजीब शोर मचा है पर अंदर का जी पल पल मर रहा है वैसे तो facebook पे ना जाने कितने चेहरे जुडे है पर अपनों का face भी वक्त के साथ बदलने लगा है digital की दुनिया में प्यार भी digital होने लगा है सुबहा होती है वफा की कस्में पर शाम होते ही यार दिलदार बेवफा होने लगा है युँ तो कँलेंडर में कईं day बन रहै मनाने के लिए काश इन्सानियत का भी day बन जाए जीने के लिए पत्थर की है दुनिया फिर भी ये शायर दिलों को तलाशने लगा है हाले दिल