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मेरा मन सम्मोह की चादर ओढ़े, चितवन लगाए मानो जैसे

मेरा मन सम्मोह की चादर ओढ़े, चितवन लगाए मानो जैसे उसकी लज्जा की आसक्ति से बंधा हो

बस इतना ही सामर्थ्य रहा हम दोनों की अनुरक्ति का मेरी दीदा और उसकी हया के वात्सल्य की शक्ति का

बोधगम्यता के अथाह अवधारण की तुष्टि, तुम तुम नहीं मेरे काव्य सौंदर्य की कृतित्वता का एक प्रवीण मर्म हो

तुम्हीं में दत्तचित्त होकर शब्दों का अलंकरण करता हूं मेरी रचना विदित होती, हमारी आपसी तकरीर हुई हो

©Viraaj Sisodiya #काव्यसौंदर्य #प्रेम #अनुराग #आसक्ति #YourQuote #YourQuote Didi #Viraaj
मेरा मन सम्मोह की चादर ओढ़े, चितवन लगाए मानो जैसे उसकी लज्जा की आसक्ति से बंधा हो

बस इतना ही सामर्थ्य रहा हम दोनों की अनुरक्ति का मेरी दीदा और उसकी हया के वात्सल्य की शक्ति का

बोधगम्यता के अथाह अवधारण की तुष्टि, तुम तुम नहीं मेरे काव्य सौंदर्य की कृतित्वता का एक प्रवीण मर्म हो

तुम्हीं में दत्तचित्त होकर शब्दों का अलंकरण करता हूं मेरी रचना विदित होती, हमारी आपसी तकरीर हुई हो

©Viraaj Sisodiya #काव्यसौंदर्य #प्रेम #अनुराग #आसक्ति #YourQuote #YourQuote Didi #Viraaj