मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं, उर्वशी! अपने समय का सूर्य हूँ मैं अंध तम के भाल पर पावक जलाता हूँ, बादलों के सीस पर स्यंदन चलाता हूँ पर, न जानें, बात क्या है ! इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है, सिंह से बाँहें मिलाकर खेल सकता है, फूल के आगे वही असहाय हो जाता , शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता रामधारी सिंह 'दिनकर' मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं, उर्वशी! अपने समय का सूर्य हूँ मैं अंध तम के भाल पर पावक जलाता हूँ, बादलों के सीस पर स्यंदन चलाता हूँ पर, न जानें, बात क्या है ! पर, नजानें, बात क्या है ! इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है, सिंह से बाँहें मिलाकर खेल सकता है,