ग़ज़ल जिस्म से रिश्ता , निभाने आ गये| फर्ज हम अपना , चुकाने आ गये| फिर अँधेरा छा न जाए इसलिए, एक दीपक हम , जलाने आ गये| जिंदगी बन जाय ना सहरा कहीं