भर लूँ अपने कुछ नमकीन अश्क़ पैमाने में, कि और कोई नशा मिलता नही ज़माने में। पहन लेता हूँ अक्सर पैरहन झूठी मुस्कुराहट की, पर्दा कोई इससे बेहतर नहीं सब कुछ ढकाने में। कुछ जख़्मो को रफ़ू करना बाकी है अब तलक, फिर भी मेरा जाता क्या है बनावटी दिखाने में। जानता हूँ कि भ्रम में डूबी हुई जीस्त है मेरी, बहला रहा हूँ ख़ुद को महज़ एक बहाने में। सर-ए-महफ़िल मैं भी कर दूँ सारे राज़ बयाँ, क़ल्ब-ए-तस्कीन मिलती है सब कुछ छुपाने में। अब अकेलापन ही यार हो गया है 'अनाम', मज़ा है ख़ुद ही रूठने और ख़ुद ही मनाने में। मुद्दतों से मैं इक यार का इंतज़ार करता रहा महफ़िल महफ़िल मैं यूँ ही तन्हा फिरता रहा #अनाम #अनाम_ख़्याल #lifelessons #lonliness