कुछ अधूरे से ख्वाब मेरे... ख्वाब ही तो है जनाब, कब होते है पूरे पलकों तले आशियाना है इनका ओस की बूंदों सा अस्तित्व है जिनका आंखो में जो बन्द रहें, तो नींद मीठी लागे देखे जो खुली आखों से ये ख्वाब ,तो ज़िन्दगी अंगीठी लागे कभी उलझे ये जिम्मेदारी के तारों में कभी बिके गरीबी और समाज के नियमों के बाजारों में कुछ अधूरे से रहे ये ख्वाब मेरे....... जहां सजाते सुंदर ये ,आंखो की रात अंधियारी में सहम जाते है देख भीड़ ,इस दिन की दुनियादारी में जनाब इनका कोई साथी, ना कोई कभी सगा हुआ भागे जब जब इनके पीछे,मानो कर्तव्यों से पाया खुद को बंधा हुआ ख्वाब ही तो थे जनाब रह गए अधूरे कहां होते है सभी के पूरे.. मीठी सी नींद में दो पल का सुकून दे जाते हैं भोर की किरण में ना जाने कहां गुम हो जाते हैं दिनभर की तपिस में ज़िन्दगी की दौड़ लगवाते है सांझ की लालिमा में जीवन के मायने समझाते हैं जनाब ख्वाब ही तो है,सबके कहां पूरे हो पाते हैं वक्त की इस रफ्तार में, अधूरे रह ही जाते हैं...