ज़रूरतें इंसान की उसके मन मे हों खुद जो उपजी सरल मधुर सुर ताल मे होती हैं पूरा करने में देती उनका साथ पूरी शिद्दत से सारी कायनात दूसरों की प्रतिस्पर्धा से, लालच से जो मिथ्या सी ज़रूरतें उग आती हैं उन्हीं के बोझ से इंसानियत, प्रकृति और कायनात शर्म से झुक जाती हैं सुप्रभात। इंसान की ज़रूरतें और उसकी चाहतें ज़रूरी नहीं अथाह हों... #इंसानकीज़रूरतें #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi