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ग़मे हुसैन में रोता है क़ायनात अब भी। हद से जाकर मै

ग़मे हुसैन में रोता है क़ायनात अब भी।

हद से जाकर मैंने अनहद में देखा।
फूल, शज़र, जिन्न व बशर में देखा।
पहाड़, दरिया और समंदर में देखा।
सिसकती,बिलखती फ़िज़ाओं में देखा।
आता है महीना ये मुहर्रम का जब भी।
ग़मे हुसैन में रोता है क़ायनात अब भी।

नाना के दिन पर अब जान को लुटाने।
बचपन में किये हुए हर वादे को निभाने।
दीन के राह में पड़े हर कांटे को हटाने।
बहत्तर मुसाफिर चल दिये दीन को बचाने।
दिया जो ख़ून सभी ने, है गवाह रब भी।
ग़मे हुसैन में रोता है,.....

या रब क्या ज़ुल्म की वो इन्तहा होगी?
सब्र के उनकी क्या कोई,इन्तहा होगी?
इधर भी थे नमाज़ी,उधर भी थे नमाज़ी।
इधर हक़ की लड़ाई, उधर सिर्फ बेहयाई।
ना मुमकिन है सबकुछ लिखना अब भी।
ग़मे हुसैन में रोता है,.........

 (Md Shaukat Ali "Saani") याद ए कर्बला 7। #Nojoto #Nojotonews
ग़मे हुसैन में रोता है क़ायनात अब भी।

हद से जाकर मैंने अनहद में देखा।
फूल, शज़र, जिन्न व बशर में देखा।
पहाड़, दरिया और समंदर में देखा।
सिसकती,बिलखती फ़िज़ाओं में देखा।
आता है महीना ये मुहर्रम का जब भी।
ग़मे हुसैन में रोता है क़ायनात अब भी।

नाना के दिन पर अब जान को लुटाने।
बचपन में किये हुए हर वादे को निभाने।
दीन के राह में पड़े हर कांटे को हटाने।
बहत्तर मुसाफिर चल दिये दीन को बचाने।
दिया जो ख़ून सभी ने, है गवाह रब भी।
ग़मे हुसैन में रोता है,.....

या रब क्या ज़ुल्म की वो इन्तहा होगी?
सब्र के उनकी क्या कोई,इन्तहा होगी?
इधर भी थे नमाज़ी,उधर भी थे नमाज़ी।
इधर हक़ की लड़ाई, उधर सिर्फ बेहयाई।
ना मुमकिन है सबकुछ लिखना अब भी।
ग़मे हुसैन में रोता है,.........

 (Md Shaukat Ali "Saani") याद ए कर्बला 7। #Nojoto #Nojotonews
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Saani

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