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आशाएँ जन से खेल गयीं, तृष्णा की अंध गुफाओं में । त

आशाएँ जन से खेल गयीं,
तृष्णा की अंध गुफाओं में ।
तरु पुष्पित को रसहीन किया,
दुर्जन सी बेल लताओं ने ।।
क्षण एक विकट अति बीते है,
ज्वर से विक्षत तन सोता है ।
प्रभु आज्ञा की जो अवज्ञा की,
कवि आत्महन्त बन रोता है ।।
(Must Read The Captions) "कवि की आत्महत्या"
एक कविता जो कवि के अन्तरदहन को बताती है

यह कोई काल्पनिक कथा नहीं है। मेरे जीवन की सच्चाई है।

गत रात्रि से शरीर में शक्तिहीनता है, ज्वरग्रस्त हूँ। आँखों में नींद बाकी है, बड़ी पीड़ा की स्थिति है।

सुबह से लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। मेरे शब्द जैसे लुप्तप्रायः हो गए हैं।
आशाएँ जन से खेल गयीं,
तृष्णा की अंध गुफाओं में ।
तरु पुष्पित को रसहीन किया,
दुर्जन सी बेल लताओं ने ।।
क्षण एक विकट अति बीते है,
ज्वर से विक्षत तन सोता है ।
प्रभु आज्ञा की जो अवज्ञा की,
कवि आत्महन्त बन रोता है ।।
(Must Read The Captions) "कवि की आत्महत्या"
एक कविता जो कवि के अन्तरदहन को बताती है

यह कोई काल्पनिक कथा नहीं है। मेरे जीवन की सच्चाई है।

गत रात्रि से शरीर में शक्तिहीनता है, ज्वरग्रस्त हूँ। आँखों में नींद बाकी है, बड़ी पीड़ा की स्थिति है।

सुबह से लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। मेरे शब्द जैसे लुप्तप्रायः हो गए हैं।