देश वतन मेरा वहाँ जा रहा है ,जिसके लायक था,,,परम वैभवं नेतुतंस्वराष्ट्रंम्,, देश मेरा विकास के चरम पर,अग्रसर है नित नित,,कदम कदम लिख रहा कहानी एक कदम पुरोधा,,निज जीवन का त्याग कर,बनकर वो संन्यासी सा राम,,,,,लेकर यह सकल्प ,,,,, सौगंध मुझे इस मिट्टी की,यह देश नही झुकने दुँगा,,,,,,,,,मेरा वतन विश्व पटल पर अपनी छाप छोडने जा रहा है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ओम भक्त मोहन बनाम कलम मेवाड की,,,,,,यह मेरे विचार है मेरे देखने का तरीका है,,हो सकता है मेरे विचार आपको पसंद नही लेकिन मै आपके विचारो को प्रकट करने मे सहायता करुँगा,,,,वाल्तेयर सर की यह पंक्ति मेरी प्रेरणास्त्रोत है