चन्द लफ्जे लिखा करता था , अपनी खामोशी को डायरी मे संजोया करता था , उखडे जो पन्ने दोस्तो के दरमियाँ कुछ हगामा सा हो गया था ! हा शायद मै सच्च लिखता था अपने दर्द को डायरी मै छुपाया करता था । डरता था किसी को कुछ कहने से एक साथी थी मेरी जिसमे आँसुओ मे कलम डुबो कर लिखता था , ना रास आई उन्हें मेरी ओर कलम कि दोस्ती... शायद मै सच्च लिखता था चुभे जो शब्द उनके सिन्ने मे कुछ जख्म हुए तो माफ करो मरहम मै करवा दुृँगा । एक प्यार है मेरा गजलो से यू ना तुम मुझे उनसे दुर करो एक प्यार है मेरा गजलो से यू ना तुम मुझे उनसे दुर करो .... ! Sachin alha Likh to du bhut kuch khi hagma na ho jaye....