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मै खुद पे मरती हू, पर मोहोब्बत से डर थी हू बादलोसे

मै खुद पे मरती हू, पर मोहोब्बत से डर थी हू
बादलोसे से हर बार झगडती हू.पर जब गरजे वो उस से डरती हू...
हा, थोडी डरपोक सी पर हा, मै खुद पे मरती हू

कभी खिला गुलाब हू, कभी काटो की चादर हू 
कभी महकती खुशबू हू, कभी मुरझाई कली हू
मै सागर की लहर मानो, हर पल रातें बदलती हू
हा, थोडी डरपोक सी पर हा,मै खुद पे मरती हू....

आज रुठी जिस बात पर, कल उसे मनवाती हू
जो बात मुझे सताती, उसे तंग कर जाती हू
हा, थोडी डरपोक सी पर हा,मै खुद पे मरती हू.....

©@nadan -prinde #मै
मै खुद पे मरती हू, पर मोहोब्बत से डर थी हू
बादलोसे से हर बार झगडती हू.पर जब गरजे वो उस से डरती हू...
हा, थोडी डरपोक सी पर हा, मै खुद पे मरती हू

कभी खिला गुलाब हू, कभी काटो की चादर हू 
कभी महकती खुशबू हू, कभी मुरझाई कली हू
मै सागर की लहर मानो, हर पल रातें बदलती हू
हा, थोडी डरपोक सी पर हा,मै खुद पे मरती हू....

आज रुठी जिस बात पर, कल उसे मनवाती हू
जो बात मुझे सताती, उसे तंग कर जाती हू
हा, थोडी डरपोक सी पर हा,मै खुद पे मरती हू.....

©@nadan -prinde #मै