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दोनो इस जहा न हो प्रित की सीमा न हो। लगे इस पल के

दोनो इस जहा न हो प्रित की सीमा न हो।
लगे इस पल के सिवा, उम्र अब बचा न हो।

रति क्रीड़ा खेद हो, तनों का विच्छेद हो।
प्रित के आखेट का, समझे सारा भेद हो।

कितनी हसी रात हो, आज सखी साथ हो।
जीवन के अध्याय का, आज नया पाठ हो।

कितनी हसी रात हो, आज सखी साथ हो...

©शैलेन्द्र शैनी # आज सखी साथ हो 4
#poetry 
#प्रेम

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