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दर्द की हर तह को ,दिल छिपाये बैठा है। ना जाने इस ख

दर्द की हर तह को ,दिल छिपाये बैठा है।
ना जाने इस खामोशी में,
 कितने सैलाब छिपाये बैठा है।।
कि डरता है ज़माने को दिले हाल सुनाने से।
आज़ फ़िर एक बार ,आइनें को ही दोस्त बना बैठ है।।

दर्द की हर तह को ,दिल छिपाये बैठा है। ना जाने इस खामोशी में, कितने सैलाब छिपाये बैठा है।। कि डरता है ज़माने को दिले हाल सुनाने से। आज़ फ़िर एक बार ,आइनें को ही दोस्त बना बैठ है।।

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