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सूना है शियासत दीवारे बना रही है ; देश की गरीबी को

सूना है शियासत दीवारे बना रही है ;
देश की गरीबी को वो चंद ईंटों से छूपा रही है ।।

कीतना अच्छा होता की उस ईंट का हर एक टूकडा किसी के घर की छत बन जाता ;
कम से कम देश मे मेरे थोडा सा ही सही लेकीन सूधार आ जाता ;
और वो इन्सान उस झूपडपट्टी से नीकलकर एक पक्के मकान मे आ जाता ।।

आपका नही पता पर मेरे लिये तो यही विकास केहलाता ।।
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।। बात गरीबी मीटाने की हुई थी साहब छूपाने की नही ।। बात गरीबी मीटाने की हुई थी साहब ; छूपाने की नही ।।
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सूना है शियासत दीवारे बना रही है ;
देश की गरीबी को वो चंद ईंटों से छूपा रही है ।।

कीतना अच्छा होता की उस ईंट का हर एक टूकडा किसी के घर की छत बन जाता ;
कम से कम देश मे मेरे थोडा सा ही सही लेकीन सूधार आ जाता ;
और वो इन्सान उस झूपडपट्टी से नीकलकर एक पक्के मकान मे आ जाता ।।

आपका नही पता पर मेरे लिये तो यही विकास केहलाता ।।
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।। बात गरीबी मीटाने की हुई थी साहब छूपाने की नही ।। बात गरीबी मीटाने की हुई थी साहब ; छूपाने की नही ।।
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बात गरीबी मीटाने की हुई थी साहब ; छूपाने की नही ।। 🔥🔥🔥