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इन फिजाओं में ये ठंडक कैसी, सूरज का यूँ गुनगुनान

इन फिजाओं में ये ठंडक कैसी, 
सूरज का यूँ गुनगुनाना।। 
मखमली घास का इतराना कैसा,  
हवाओं का यूँ थपथपाना। 
भौरों का गुंजन ये कैसा, 
फूलों का यूँ लहलहाना। 
चिड़ियों की कूक ये कैसी, 
बहारों का यूँ मुस्कुराना।।

©अंकित भट्ट
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