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सुना था चेहरों को पढ़ने में वह माहिर है मगर मेरे

सुना था चेहरों को पढ़ने में वह माहिर है मगर
 मेरे मुस्कुराते हुए चेहरे के अंदर का दर्द वो पढ़ ना सके
 बागवा बनना हो कुछ इस तरह से बनो यारों कि खिजा के मौसम में भी शाखों से कोई पत्ता झड़ ना सकें

©Aurangzeb Khan
  muhafiz ho to aisa ho

muhafiz ho to aisa ho #Life

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