न जाने क्या था...... कहीं कुछ मेरा खो गया था न जाने क्या था वो जो मुझे कभी भी मिल पाया नही..... कहीं तो कुछ यूँ चटका था न जाने क्या था वो जो मुझे कहीं भी नज़र आया नही..... कुछ तो ज़रा सा बिखरा था न जाने क्या था वो जो मुझ से कभी सिमट पाया नही..... कोई तो था जो दूर खड़ा था नजाने कौन था वो जो मुझ से कभी लिपट पाया नही..... कहीं तो कोई दर्द सा उठा था नजाने कैसा सा था वो जो मुझमें कहीं भी समाया नही.... कहीं तो धुँआ हवा हुआ था नजाने कहाँ बह गया वो जो मेरी आँखों में समाया नही.... कहीं तो हल्का सा जंख्म था नजाने किस तरह का था वो जो कभी भी भर पाया नही.. कुछ तो इस कदर डूबा था नजाने क्या था वो जो कभी उभर कर सामने आया नही... कहीं तो कुछ अधूरा सा था नजाने क्या था वो जो मुझे कभी भी पूरा कर पाया नही... कहीं तो इक आग लगी थी नजाने क्या थी वो जिसे मेरा दिल कभी समझ पाया नही. कुछ तो कहीं शामिल सा था पर न जाने क्या था वो जो मुझे कभी भी मिल पाया नही.. ....¤¤.. न जाने क्या था...... कहीं कुछ मेरा खो गया था न जाने क्या था वो जो मुझे कभी भी मिल पाया नही..... कहीं तो कुछ यूँ चटका था न जाने क्या था वो जो मुझे कहीं भी नज़र आया नही.....