कहां गयी नींद मुझे अभी सोना हैं... आज तमाम रात तकिया भिगोना हैं..। इस मक़ाँ की ये बात अच्छी नहीं हैं... इस कमरे में चारों तरफ़ कोना हैं..। हादसों ने मेरी कहानी लिखी हैं... मॆरा किरदार जैसे कि, खिलौना हैं..। विकास उस मुक़ाम पर आ पहुंचा हैं कि... रोज सिर्फ़ बार-बार हाथ धोना हैं..। जब आख़िर मुलाक़ात की इल्तिजा की... वो कहने लगी अब तो कोरोना हैं..। काले धागे को लाज़िम किया जाए... तिरछी निगाह का ये जादू-टोना हैं..। पल भर जिंदग़ी है हँस भी लो ‘ख़ब्तुल’... बाद मय्यत में रोना ही रोना हैं..। - ख़ब्तुल संदीप बडवाईक इल्तिजा