कतरा कतरा बह रहा है हर शख्स जो ठहरा सा है सांस तब टूटती जा रही है जब सांसो पर पहरा सा है जाने कब तक यूं चलेगा कहर ढाती यह बवा जो है और कितना खोना पड़ेगा जब कटेगी यह बला जो है। मन तो रीता जा रहा है वक्त यह कटता नहीं है सुख बांटने को भीड़ थी दुख मगर बंटता नहीं है। लौटेंगे नहीं वो लोग जो इस तूफान में हैं बह गए दुनिया ही उनकी बदल गई जो उनके पीछे रह गए। प्रकृति तुम ही करो कुछ रोक लो इस विनाश से इस धरा को फिर सजा दो खिलखिलाती उजास से। कोरोना का कहर हर घर को,हर जीवन को प्रभावित कर रहा है। कितने ही लोग असमय काल के गाल में समा गए। कितने ही लोगों का रोजगार चला गया। कितने लोगों को अपनी भुखमरी और अपने जीवन में चुनाव करना पड़ रहा है। अब तो धैर्य भी रीत गया है.... कतरा कतरा बह रहा है हर शख्स जो ठहरा सा है सांस तब टूटती जा रही है जब सांसो पर पहरा सा है जाने कब तक यूं चलेगा