खात्मा _ए_याद मुमकिन नहीं है पाक चाहत में खुद को पाषाण बनते देखा पर फिर भी जिंदगी का मतलब समझ नहीं आया हमें मालूम होता है अपने ही जिस्म में पल पल दम तौर रहा हूं "मैं" मत पूछो उनसे रिश्तों की कीमत जो बता खुद को इंसान और दिनदहाड़े विश्वास का बलात्कार किया करते रिश्तों की कीमत तो वो जानते जो खुद को खामोशी की अनंत अग्नि में झोंक किसी की उम्मीद और जिंदगी को रोशन कर जाते । अंदाजा ही नहीं था कि जिस्मानी तरजीह_ए_शख्स से ईश्क फरमा रहे है गर मालूम होता तो कभी रुखसत भी ना होते शहर_ए_मोहब्बत से अब छोड़ दी है निगाह उल्फत_ए_अक्श देखना ,भला जिसे जज्बातों की कद्र ना हो उसे दुआओं में क्या मांगना अजीब मसला है इस बेदर्द दिल की सुलझ ही नहीं रही उससे बड़ी शिद्दत से नफरत कर भी रहा हूं और कतरा कतरा अश्क छलक भी रहा उसकी याद में एक तरफ यादों का सैलाब और दूसरी तरफ मेरा भविष्य ,अब तु ही बता ऐ जिंदगानी ! तेरा कर्ज किस तरह अदा किया जाए । #बेदर्दइश्क़ #काल्पनिक_पोस्ट #कुछ शब्द छापा हूं किसी की शायरी से #yqdidi #kunu