खामोश रहता हूं मैं अक्सर फिर भी लब कह जाते हैं। सोचकर बनाना ख्वाबों के महल, अमूमन ढह जाते हैं।। भुला नहीं पाए हम दगा ए इश्क को, ज्यों दरिया सूख जाए तो निशां रह जाते हैं। खामोश रह.......... मैंने जो इश्क किया था सरेआम कर दिया, जमाने भर की बातें तेरे लिए सह जाते हैं। खामोश रह.......... दिल के दर्द ये जमाने से तो छिपा लेता हूँ, जब भी उसकी याद आती है, आँसू बह जाते हैं। खामोश रह.......... क्या नाम देता मैं इस रिश्ते को जो बन ही नहीं पाया, वो चले जाते हैं छोड़कर और हम अकेले रह जाते हैं।। खामोश रह.......... खामोश रहता हूँ मैं #hindipoetry