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✍️ऐ दोस्तों ✍️ एक बार फिर उठा हूं हर बार की तरह।

✍️ऐ दोस्तों ✍️

एक बार फिर उठा हूं हर बार की तरह।
बढ़ गए क़दम घर से निकल पड़ा हूं मैं।।

ना कर कोशिशें तू रोकने की ना,काम हो जाएगी।
तस्वीर मंज़िल की दिल में बसा कर चल पड़ा हूं मैं।।

जीतेगी कब तक ज़िंदगी कभी तो हरेगी मुझसे।
आंखों में सपना तुझे हराने का लिए चल पड़ा हूं मैं।।

देखता हूं कब तक हारता रहुंगा हालातों से मैं भी।
फिर हालातों से करने मुक़ाबला निकल पड़ा हूं मैं।।

होता रहूं ना,काम बे,शक पर हार मानूंगा नहीं।
कि जज़्बा जीतने का दिल में लिए फिर चल पड़ा हूं मैं।।

इक दिन लिख दूंगा देख लेना उस फलक पे नाम अपना।
सपना सजा कर आंखों में ये चल पड़ा हूं मैं।।

कि अब रुकना नहीं है बस आगे बढ़ते ही जाना है।
ख़ुद से ही खाके ख़ुद की कसम चल पड़ा हूं मैं।।

©अभिलाष द्विवेदी (अकेला)
  जज़्बा,ए,दिल 🔥🔥🔥