सजती थी कभी महफ़िल रात के आंगन में, झिलमिल आकाश के नीचे बिछौना लगता था आंगन में। सब इकट्ठा बैठ सुनते राजकुमार और परियों की कहानी, बड़े उत्सुक रहते थे सुनने को, कभी दादी कभी नानी की जुबानी। दादी नानी को भूले!ना अब किस्सागोई रही ना वो कहानियाँ, ना सहन बचे ना अपनापन, रह गई खंण्डर हवेलियाँ। ये ख़ूबसूरत नज़ारे करते हैं कुछ इशारे आओ, आओ रात के आँगन में #रातकाआँगन #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi