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गिटार के तार की झंकार गूंजती है अब भी मेरे कानों

गिटार के तार की झंकार 
गूंजती है अब भी मेरे कानों में 
याद दिला जाती है 
यौवन के वो दिन 
जब मेरे कहने भर से 
छेड़ देते थे 
नग्मे अनेक 
समझ ना पायी मैं
वो इश्क था तुम्हारा 
तुम्हारा साथ अच्छा लगता था 
लेकिन इतनी खो जाती थी 
उस धुन में 
पढ़ ना पाई 
तुम्हारी आंखों से बरसती 
बेपनाह मोहब्बत को

©Prapti Singh
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